दूसरा शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) युवा लेखक सम्मेलन, 2025 डिजिटल युग में रचनात्मकता पर सार्थक चर्चा के साथ संपन्न हुआ
नई दिल्ली। शिक्षा मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय के सहयोग से 25-26 सितंबर, 2025 को नई दिल्ली में दूसरा द्विवार्षिक एससीओ युवा लेखक सम्मेलन सफलतापूर्वक आयोजित किया। इस कार्यक्रम का आयोजन शिक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत द्वारा किया गया था।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि, शिक्षा मंत्रालय के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के सचिव श्री संजय कुमार ने साझा साहित्य और संस्कृति के माध्यम से एससीओ सदस्य देशों के बीच सभ्यतागत संबंध पर जोर दिया। उन्होंने प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ-साथ सीखने के साधन के रूप में पुस्तकों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
भारत के एससीओ राष्ट्रीय समन्वयक और विदेश मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव (एससीओ) श्री आलोक ए. डिमरी ने भी सभा को संबोधित किया और युवाओं के बीच सहयोग की भावना की सराहना की।
एससीओ सचिवालय की सलाहकार मिसेज़ मिनारा रखानोवा ने सत्र को संबोधित किया और सदस्य देशों के बीच निरंतर सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए युवा रचनात्मक प्रतिभाओं का समर्थन करने में भारत के प्रयासों की सराहना की।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के अध्यक्ष प्रोफेसर मिलिंद सुधाकर मराठे ने सम्मेलन में विभिन्न दृष्टिकोण साझा करने के लिए लेखकों को बधाई देते हुए स्वागत भाषण दिया।
सम्मेलन में भाग लेने वाले कुछ युवा लेखकों ने अपने अनुभव साझा किए और एससीओ देशों के बीच संवाद और रचनात्मक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने में इस मंच के महत्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के निदेशक श्री युवराज मलिक के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के मुख्य संपादक और संयुक्त निदेशक श्री कुमार विक्रम ने समापन सत्र का संचालन किया।
यह उल्लेखनीय है कि विदेश राज्य मंत्री श्री कीर्तिवर्धन सिंह ने 25 सितंबर, 2025 को सम्मेलन का उद्घाटन किया था। उन्होंने कहा कि एससीओ न केवल एक राजनीतिक और आर्थिक समूह है, बल्कि यह सांस्कृतिक जुड़ाव के लिए एक गतिशील मंच भी है। दो दिवसीय इस कार्यक्रम के दौरान, सम्मेलन में भाग लेने वालों ने साहित्य, सिनेमा, संगीत, कला, संस्कृति, रेडियो और टेलीविजन पर डिजिटलीकरण के परिवर्तनकारी प्रभाव पर चर्चा की। लेखन और प्रकाशन पर पहला सत्र, जिसकी अध्यक्षता श्री मिलिंद सुधाकर मराठे ने की और जिसे श्री कुमार विक्रम ने मॉडरेट किया। उन्होंने साहित्यिक संस्कृतियों के डिजिटलीकरण और लेखकत्व की पुनर्संरचना पर चर्चा की। झां झिसाई (चीन) ने अपने वीडियो संदेश में सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए डिजिटलीकरण की क्षमता पर प्रकाश डाला, जावलोन जोव्लियेव (उज्बेकिस्तान) ने उज्बेक साहित्य में उभरते तरीकों पर अपने विचार साझा किए और एना बाबिना (रूस) ने एआई को एक ऐसे उपकरण के रूप में बताया जो मानव रचनात्मकता की जगह नहीं ले सकता। भारत से, पेंगुइन रैंडम हाउस की सालोनी मित्तल ने गुणवत्ता सुनिश्चित करने में पारंपरिक प्रकाशन के निरंतर महत्व पर जोर दिया।
संगीत पर दूसरा सत्र, जिसकी अध्यक्षता डॉ. सोनू सैनी ने की और जिसे प्रो. रंजना बनर्जी ने मॉडरेट किया। उन्होंने संगीत के तरीकों में बदलाव की समीक्षा की। अविनाश कुमार (भारत) ने सामवेद से लेकर आधुनिक प्लेटफॉर्म तक शास्त्रीय संगीत की यात्रा का वर्णन किया, जबकि डॉ. सोम्या गुरुचरण ने एआई के रचनात्मक क्षमता को स्वीकार करते हुए इसके दुरुपयोग के प्रति आगाह किया। शुरात ओरिफ (उज्बेकिस्तान) ने बताया कि कैसे डिजिटल युग लोक परंपराओं को पुनर्जीवित कर रहा है और सांस्कृतिक मूल्यों को मजबूत कर रहा है।

सिनेमा पर तीसरा सत्र, जिसे प्रो. मंजू रानी हारा ने मॉडरेट किया, ने सिनेमा को एक सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया। कृतिका कोहली (भारत) ने भारत में सिनेमा के विकास का वर्णन किया, फरिदोद्दीन फरिदास्र (ईरान) ने ईरानी सिनेमा का ऐतिहासिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया और स्वरूप सरदेसमुख (भारत) ने सिनेमा को सामाजिक परिवर्तन का प्रतिबिंब माना। चर्चा करने वालों में अदिति सिंह, अहमद इश्तियाक और नवा फातिमा ने एआई और एल्गोरिदम आधारित सामग्री की भूमिका पर चर्चा की। प्रो. मराठे ने निष्कर्ष में कहा कि सिनेमा भारत की बदलती चेतना को दर्शाता है और मुख्यधारा की बॉलीवुड के साथ-साथ समानांतर सिनेमा को भी मान्यता दी जानी चाहिए।
कला और संस्कृति पर चौथा सत्र, जिसकी अध्यक्षता एलेना रामिज़ोवा ने की और जिसे सुबीर डे ने मॉडरेट किया, ने डिजिटल युग में कलात्मक अभिव्यक्ति और सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व पर ध्यान केंद्रित किया। वक्ताओं में देबरोति चक्रवर्ती (भारत) शामिल थे, जिन्होंने शिक्षाशास्त्र और कलात्मक अभिव्यक्ति पर चर्चा की; आर्टेम रगीमोव (रूस), जिन्होंने सामग्री की पहुँच और लोकतांत्रिकता के बारे में बात की; और सिमरप्रीत सोखी (भारत), जिन्होंने भारत में अभिलेखन और डिजिटलीकरण के तरीकों पर प्रकाश डाला। वैशाली गहल्यान और श्रीषा सरकार ने चर्चा को और आगे बढ़ाया। इस सत्र में भारत की नई शिक्षा नीति-2020 और ज्ञान भारत मिशन के तहत उपलब्धियों पर भी प्रकाश डाला गया, जिसमें अब तक 44 लाख से अधिक पांडुलिपियों को डिजिटलाइज़ किया जा चुका है।
रेडियो पर पांचवां साहित्यिक सत्र, जिसकी अध्यक्षता श्री युवराज मलिक ने की और प्रो. रंजना सक्सेना ने संचालन किया। उन्होंने “पॉडकास्टिंग के युग में मौखिक संस्कृति का पुनरुत्थान” विषय पर चर्चा की। शु हान (चीन) ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म को पुल के रूप में बताया, सायक पाल (भारत) ने महामारी के दौरान पॉडकास्ट के बढ़ते चलन के बारे में बताया और अन्ना बाबिना (रूस) ने रूस में इसके विकास पर चर्चा की। चर्चा करने वालों ने प्रामाणिकता, सांस्कृतिक पहचान और नैतिक जिम्मेदारी पर अपने विचार रखे, जबकि श्री मलिक ने मौखिक माध्यमों के पुनरुत्थान को भारत की श्रुति और स्मृति की परंपराओं से जोड़ा। टेलीविजन पर अंतिम सत्र, जिसका संचालन प्रो. रश्मि दोराईस्वामी ने किया, ने पारंपरिक और डिजिटल ब्रॉडकास्टिंग के अभिसरण पर चर्चा की। वक्ताओं शुहरत ओरिफ (उज्बेकिस्तान), नईम शौकत (भारत) और आर्मेम रागीमोव (रूस) ने देखा कि अभिसरण कैसे कई स्तरों पर होता है, जैसे तकनीकी, व्यावसायिक, पेशेवर और विषयगत। वक्ताओं ने अभिसरण में बदलाव को समझने के लिए मीडिया के अलग-अलग रूपों की पड़ताल की। चर्चा करने वालों तुषार ऋषि, शरीक मोहम्मद अजीज और पीयूष कुमार ने वक्ताओं से पूछा कि अब टेलीविजन सामग्री स्वयं कितनी बहुमुखी है। प्रो. मिलिंद सुधाकर मराठे ने ब्रॉडकास्टिंग के सांस्कृतिक महत्व पर अपने विचार रखे।
कुल मिलाकर, सम्मेलन में चर्चा से यह बात सामने आई कि युवा रचनाकारों की दोहरी जिम्मेदारी है कि वे रचनात्मक सीमाओं को बढ़ाने वाले तकनीकी उपकरणों को अपनाएँ और साथ ही सांस्कृतिक विरासत की समृद्धता की रक्षा करें। प्रतिभागियों ने डिजिटल विभाजन को कम करने, बौद्धिक संपदा सुरक्षा को मजबूत करने और एससीओ देशों के बीच संयुक्त परियोजनाओं को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया।
एससीओ युवा लेखक सम्मलेन, 2025 एक रचनात्मक मंच के रूप में संपन्न हुआ, जिसने यह समझने में मदद की कि कैसे डिजिटल स्थान रचनात्मक अभिव्यक्ति को आकार देते हैं और साथ ही मानव कल्पना और सांस्कृतिक परंपराओं की जीवटता को बनाए रखते हैं। शिक्षा मंत्रालय ने एससीओ क्षेत्र में युवा प्रतिभाओं को बढ़ावा देने, सांस्कृतिक कूटनीति का समर्थन करने और समावेशी डिजिटल ज्ञान समाज के निर्माण के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया।